Sunday, March 1, 2015

लफ़्ज़ों के तले

यारोँ के संग, निकले एक सफर पे ना सुध किसीको, बेखबर हरकोई... राह मिल गयी, सफर गया बन मिलने मंज़िल को, थे तैयार हम... ख़ामोशी के बादलों को करके परे शोर भरे रास्तों से भी ना डरे... सवार होके मुकद्दर कि क़श्ती में अनकहे बस गए दोस्ती की बस्ती में... अंधेरों को भी सुर लग रहा था रौशनी का सवेरा अब दूर लग रहा था... सन्नाटे की इस खुशबु से होकर रूबरू यादों की फरियादों का था दौर शुरू... मदहोश हरकोई, धुन बजाये अपनी यारों के संग रात सजाये अपनी... फिर होगी वो सुबह, कहानी एक नयी लफ़्ज़ों के तले बातें अनकही...

Kaushal Mahesh Gupta
Image : https://instagram.com/guptakaushal/

8:07:00 PM / by / 4 Comments

4 comments:

  1. क्या खूब सफर रहा होगा आपक। हो सके तो हमें भी ले चलना अगली बार।

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    1. हमारी पूरी जिंदगी एक सफर की तरह है, आपको बस इस सफर पर निकलने की देरी है...

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  2. Nicely worded! I enjoyed your blog and wish you luck for your future work! Great going!

    Amreen Shaikh

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    1. Thank you Amreen for appreciating the work and more importantly taking out time to read the my blog :)

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